इस को समझो न ख़त्त-ए-नफ़्स 'हफ़ीज़'
और ही कुछ है शाएरी से ग़रज़
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हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे
याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात
उन की ये ज़िद कि मिरे घर में न आए कोई
गो ये रखती नहीं इंसान की हालत अच्छी
थे चोर मय-कदे के मस्जिद के रहने वाले
सच है इस एक पर्दे में छुपते हैं लाख ऐब
पहुँचे उस को सलाम मेरा
ओ आँख बदल के जाने वाले
पी कर दो घूँट देख ज़ाहिद
वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की