थे चोर मय-कदे के मस्जिद के रहने वाले
मय से भरा हुआ है जो ज़र्फ़ है वज़ू का
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क़ैद में इतना ज़माना हो गया
उन को दिल दे के पशेमानी है
ज़ाहिद को रट लगी है शराब-ए-तुहूर की
अदा परियों की सूरत हूर की आँखें ग़ज़ालों की
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
तमसील ओ इस्तिआरा ओ तश्बीह सब दुरुस्त
बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए
दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद
सच है इस एक पर्दे में छुपते हैं लाख ऐब
जब तक कि तबीअ'त से तबीअत नहीं मिलती
क़सम निबाह की खाई थी उम्र भर के लिए
आप ही से न जब रहा मतलब