तंदुरुस्ती से तो बेहतर थी मिरी बीमारी
वो कभी पूछ तो लेते थे कि हाल अच्छा है
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शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे
काबा के ढाने वाले वो और लोग होंगे
काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या दैर-ओ-हरम से मतलब
हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की
यही मसअला है जो ज़ाहिदो तो मुझे कुछ इस में कलाम है
इस को समझो न ख़त्त-ए-नफ़्स 'हफ़ीज़'
वो हसीं बाम पर नहीं आता
हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी
वस्ल आसान है क्या मुश्किल है
साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई
याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात
हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे