क़ैद में इतना ज़माना हो गया
अब क़फ़स भी आशियाना हो गया
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जब न था ज़ब्त तो क्यूँ आए अयादत के लिए
कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था
बुरा ही क्या है बरतना पुरानी रस्मों का
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
उन की ये ज़िद कि मिरे घर में न आए कोई
पी हम ने बहुत शराब तौबा
साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई
यूँ उठा दे हमारे जी से ग़रज़
इधर होते होते उधर होते होते
'हफ़ीज़' वस्ल में कुछ हिज्र का ख़याल न था
करना जो मोहब्बत का इक़रार समझ लेना
शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे