जब न था ज़ब्त तो क्यूँ आए अयादत के लिए
तुम ने काहे को मिरा हाल-ए-परेशाँ देखा
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(812) Peoples Rate This
इधर होते होते उधर होते होते
याद आईं उस को देख के अपनी मुसीबतें
सुब्ह को आए हो निकले शाम के
मिज़्गाँ हैं ग़ज़ब अबरू-ए-ख़म-दार के आगे
यही मसअला है जो ज़ाहिदो तो मुझे कुछ इस में कलाम है
क़सम निबाह की खाई थी उम्र भर के लिए
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
न आ जाए किसी पर दिल किसी का
बहुत दूर तो कुछ नहीं घर मिरा
जाओ भी जिगर क्या है जो बेदाद करोगे
तमसील ओ इस्तिआरा ओ तश्बीह सब दुरुस्त
शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से