उन की यकताई का दावा मिट गया
आइने ने दूसरा पैदा किया
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ज़ाहिद को रट लगी है शराब-ए-तुहूर की
चाक-ए-दामाँ न रहा चाक-ए-गरेबाँ न रहा
वस्ल में आपस की हुज्जत और है
बुरा ही क्या है बरतना पुरानी रस्मों का
शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे
क़ैद में इतना ज़माना हो गया
उन की ये ज़िद कि मिरे घर में न आए कोई
दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत
उन को दिल दे के पशेमानी है
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
दुनिया में यूँ तो हर कोई अपनी सी कर गया
जो काबे से निकले जगह दैर में की