Sad Poetry of Hafeez Jaunpuri (page 2)
नाम | हफ़ीज़ जौनपुरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Hafeez Jaunpuri |
जन्म की तारीख | 1865 |
मौत की तिथि | 1918 |
मोहब्बत क्या बढ़ी है वहम बाहम बढ़ते जाते हैं
मिरे ऐबों की इस्लाहें हुआ कीं बहस-ए-दुश्मन से
कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है
ख़ुद-बख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है
ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला
कहीं मरने वाले कहा मानते हैं
कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था
जाओ भी जिगर क्या है जो बेदाद करोगे
जब तक कि तबीअ'त से तबीअत नहीं मिलती
जान ही जाए तो जाए दर्द-ए-दिल
इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके
इधर होते होते उधर होते होते
हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे
हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी
'हफ़ीज़' वस्ल में कुछ हिज्र का ख़याल न था
हाए अब कौन लगी दिल की बुझाने आए
गो ये रखती नहीं इंसान की हालत अच्छी
दुनिया में यूँ तो हर कोई अपनी सी कर गया
दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के
दीवाने हुए सहरा में फिरे ये हाल तुम्हारे ग़म ने किया
दिल पर लगा रही है वो नीची निगाह चोट
दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत
दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद
चाक-ए-दामाँ न रहा चाक-ए-गरेबाँ न रहा
बुत-कदा नज़दीक काबा दूर था
बिगड़ जाते थे सुन कर याद है कुछ वो ज़माना भी
बताऊँ क्या किसी को मैं कि तुम क्या चीज़ हो क्या हो
बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है
अजब ज़माने की गर्दिशें हैं ख़ुदा ही बस याद आ रहा है