नज़र न आई कभी फिर वो गाँव की गोरी
अगरचे मिल गए देहात आ के शहरों से
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हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर
आँसू को अपने दीदा-ए-तर से निकालना
उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ
मिरे कलाम में पेचीदा इस्तिआ'रा नहीं
इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए
फिर फ़ज़ा धुँदला गई आसार हैं तूफ़ान के
मिरे रियाज़ का आख़िर असर दिखाई दिया
क्या गुल खिलाए देखिए तपती हुई हवा
जो पा लिया तुझे मैं ख़ुद को ढूँडने निकला
इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ
तुलूअ होगा अभी कोई आफ़्ताब ज़रूर