Islamic Poetry (page 39)
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले
बेख़ुद देहलवी
झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं
बेख़ुद देहलवी
हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
बेख़ुद देहलवी
हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ
बेख़ुद देहलवी
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है
बेख़ुद देहलवी
अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं
बेख़ुद देहलवी
अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था
बेख़ुद देहलवी
आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप
बेख़ुद देहलवी
आप हैं बे-गुनाह क्या कहना
बेख़ुद देहलवी
यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा
बेखुद बदायुनी
साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
बेखुद बदायुनी
नाले में कभी असर न आया
बेखुद बदायुनी
क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
बेखुद बदायुनी
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
बेखुद बदायुनी
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
बेखुद बदायुनी
हैं वस्ल में शोख़ी से पाबंद-ए-हया आँखें
बेखुद बदायुनी
ख़ुदा करे मिरा मुंसिफ़ सज़ा सुनाने पर
बेकल उत्साही
उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे
बेकल उत्साही
नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे
बेकल उत्साही
भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे मौला ख़ैर करे
बेकल उत्साही
आता है जो तूफ़ाँ आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है
बहज़ाद लखनवी
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैं
बहज़ाद लखनवी
तुम्हारे हुस्न की तस्ख़ीर आम होती है
बहज़ाद लखनवी
तुझ पर मिरी मोहब्बत क़ुर्बान हो न जाए
बहज़ाद लखनवी
तिरे इश्क़ में ज़िंदगानी लुटा दी
बहज़ाद लखनवी
मोहब्बत मुस्तक़िल कैफ़-आफ़रीं मालूम होती है
बहज़ाद लखनवी
क्या ये भी मैं बतला दूँ तू कौन है मैं क्या हूँ
बहज़ाद लखनवी
ख़ुदा को ढूँड रहा था कहीं ख़ुदा न मिला
बहज़ाद लखनवी
होना ही क्या ज़रूर थे ये दो-जहाँ हैं क्यूँ
बहज़ाद लखनवी