Islamic Poetry (page 37)
जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे
बूम मेरठी
अल्लाह अल्लाह वस्ल की शब इस क़दर ए'जाज़ है
बूम मेरठी
अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती
बूम मेरठी
सुकूँ नसीब हुआ हो कभी जो तेरे बग़ैर
बिस्मिल सईदी
मोहब्बत में ख़ुदा जाने हुईं रुस्वाइयाँ किस से
बिस्मिल सईदी
किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल'
बिस्मिल सईदी
वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है
बिस्मिल सईदी
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
बिस्मिल सईदी
रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है
बिस्मिल सईदी
कब से उलझ रहे हैं दम-ए-वापसीं से हम
बिस्मिल सईदी
फ़राहम जिस क़दर इशरत के सामाँ होते जाते हैं
बिस्मिल सईदी
उगल न संग-ए-मलामत ख़ुदा से डर नासेह
बिस्मिल अज़ीमाबादी
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
बिस्मिल अज़ीमाबादी
इक ग़लत सज्दे से क्या होता है वाइज़ कुछ न पूछ
बिस्मिल अज़ीमाबादी
'बिस्मिल' बुतों का इश्क़ मुबारक तुम्हें मगर
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं
बिस्मिल अज़ीमाबादी
रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक
बिस्मिल अज़ीमाबादी
जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी
बिर्ज लाल रअना