Islamic Poetry (page 79)
कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है
आनन्द सरूप अंजुम
हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
आलोक श्रीवास्तव
तुम 'रज़ा' बन के मुसलमान जो काफ़िर ही रहे
आले रज़ा रज़ा
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
आले रज़ा रज़ा
अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता
आले रज़ा रज़ा
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
आल-ए-अहमद सूरूर
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुदा-परस्त मिले और न बुत-परस्त मिले
आल-ए-अहमद सूरूर
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सूरूर
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
आग़ा अकबराबादी
तवाफ़-ए-काबा को क्या जाएँ हज नहीं वाजिब
आग़ा अकबराबादी
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
आग़ा अकबराबादी
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
आग़ा अकबराबादी
मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
आग़ा अकबराबादी
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह
आग़ा अकबराबादी
बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी
आग़ा अकबराबादी
वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई
आग़ा अकबराबादी
तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ
आग़ा अकबराबादी
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
आग़ा अकबराबादी
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
आग़ा अकबराबादी
नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
आग़ा अकबराबादी
नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ
आग़ा अकबराबादी
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
आग़ा अकबराबादी
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
आग़ा अकबराबादी
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
आग़ा अकबराबादी
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम
आग़ा अकबराबादी
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
आफ़ताबुद्दौला लखनवी क़लक़