Islamic Poetry (page 38)
नज़्म
बिमल कृष्ण अश्क
मिरी भी मान मिरा अक्स मत दिखा मुझ को
बिमल कृष्ण अश्क
दहशत-ज़दा ज़मीं पर वहशत भरे मकाँ ये
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
मिरी हथेली में लिक्खा हुआ दिखाई दे
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
दीवार-ओ-दर में सिमटा इक लम्स काँपता है
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
सोते में मुस्कुराते बच्चे को देख कर
बिलाल अहमद
मुश्किल
बिलाल अहमद
बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा हो
भारतेंदु हरिश्चंद्र
उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले
भारतेंदु हरिश्चंद्र
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
हम काफ़िरों ने शौक़ में रोज़ा तो रख लिया
भारत भूषण पन्त
कुछ न कुछ सिलसिला ही बन जाता
भारत भूषण पन्त
इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को
भारत भूषण पन्त
इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही
भारत भूषण पन्त
अक़्ल दौड़ाई बहुत कुछ तो गुमाँ तक पहुँचे
बेताब अज़ीमाबादी
रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
बेख़ुद देहलवी
झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले
बेख़ुद देहलवी
हमें इस्लाम उसे इतना तअल्लुक़ है अभी बाक़ी
बेख़ुद देहलवी
दी क़सम वस्ल में उस बुत को ख़ुदा की तो कहा
बेख़ुद देहलवी
'बेख़ुद' ज़रूर रात को सोए हो पी के तुम
बेख़ुद देहलवी
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
बेख़ुद देहलवी
वो और तसल्ली मुझे दें उन की बला दे
बेख़ुद देहलवी
शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
बेख़ुद देहलवी
सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है
बेख़ुद देहलवी
क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए
बेख़ुद देहलवी
मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए
बेख़ुद देहलवी
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
बेख़ुद देहलवी