Islamic Poetry (page 35)
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
दाग़ देहलवी
उस के दर तक किसे रसाई है
दाग़ देहलवी
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
दाग़ देहलवी
शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं
दाग़ देहलवी
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
दाग़ देहलवी
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
दाग़ देहलवी
पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह
दाग़ देहलवी
फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर
दाग़ देहलवी
पयामी कामयाब आए न आए
दाग़ देहलवी
ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए
दाग़ देहलवी
मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल
दाग़ देहलवी
मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं
दाग़ देहलवी
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
दाग़ देहलवी
कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया
दाग़ देहलवी
कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो
दाग़ देहलवी
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
दाग़ देहलवी
इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
दाग़ देहलवी
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
दाग़ देहलवी
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
दाग़ देहलवी
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
दाग़ देहलवी
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दाग़ देहलवी
दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने
दाग़ देहलवी
देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई
दाग़ देहलवी
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
दाग़ देहलवी
बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
दाग़ देहलवी
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
दाग़ देहलवी
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
दाग़ देहलवी
अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम
दाग़ देहलवी