Islamic Poetry (page 34)
सामने जो कहा नहीं होता
दरवेश भारती
तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है
दर्शन सिंह
रक़्स करती है फ़ज़ा वज्द में जाम आया है
दर्शन सिंह
निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी का सलाम आया तो क्या होगा
दर्शन सिंह
कहीं जमाल-ए-अज़ल हम को रूनुमा न मिला
दर्शन सिंह
जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है
दर्शन सिंह
बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर
दर्शन सिंह
आज दिल से दुआ करे कोई
दर्शन सिंह
ग़ाफ़िल ख़ुदा की याद पे मत भूल ज़ीनहार
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
मुझ को तुझ से जो कुछ मोहब्बत है
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
जग में कोई न टुक हँसा होगा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
संग-ए-बुनियाद
दानियाल तरीर
खंडर ये फिर बसाने का इरादा ही नहीं था
दानियाल तरीर
जरस और सारबानों तक पहुँचना चाहता है
दानियाल तरीर
चश्म-ए-वा ही न हुई जल्वा-नुमा क्या होता
दानियाल तरीर
सितम के बा'द भी बाक़ी करम की आस तो है
दानिश फ़राही
दिल था बे-कैफ़ मोहब्बत की ख़ता से पहले
दानिश फ़राही
वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की याद
दाग़ देहलवी
मुअज़्ज़िन ने शब-ए-वस्ल अज़ाँ पिछले पहर
दाग़ देहलवी
ख़ुदा की क़सम उस ने खाई जो आज
दाग़ देहलवी
ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से
दाग़ देहलवी
हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदो तुम को
दाग़ देहलवी
दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ
दाग़ देहलवी
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
दाग़ देहलवी
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
दाग़ देहलवी
'दाग़' को कौन देने वाला था
दाग़ देहलवी
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
दाग़ देहलवी