Ghazals of Imran Shamshad

Ghazals of Imran Shamshad
नामइमरान शमशाद
अंग्रेज़ी नामImran Shamshad

ज़िंदगी में जो ये रवानी है

यूँ भटकने में की है बसर ज़िंदगी

ये ग़लत है ये साल ठीक नहीं

तुम ने ये माजरा सुना है क्या

ठहर के देख तू इस ख़ाक से क्या क्या निकल आया

तेरी मुश्किल किसी को क्या मालूम

शोर में इर्तिकाज़ मिलता है

रफ़्ता रफ़्ता सब कुछ अच्छा हो जाएगा

मुद्दत से आदमी का यही मसअला रहा

कभी पैरों से आँखों तक चुभन महसूस होती है

जल कर जिस ने जल को देखा

इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

हमारी मोहब्बत नुमू से निकल कर कली बन गई थी मगर थी नुमू में

ढूँडिए दिन रात हफ़्तों और महीनों के बटन

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