है ख़ाल यूँ तुम्हारे चाह-ए-ज़क़न के अंदर
जिस रूप हो कनहय्या आब-ए-जमन के अंदर
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1215) Peoples Rate This
दीवार फाँदने में देखोगे काम मेरा
दस अक़्ल दस मक़ूले दस मुद्रिकात तीसों
जी चाहता है शैख़ की पगड़ी उतारिए
बंक की जल्वा-गरी पर ग़श हूँ
मैं ने जो कचकचा कर कल उन की रान काटी
गाहे गाहे जो इधर आप करम करते हैं
नज़ाकत उस गुल-ए-राना की देखियो 'इंशा'
जो बात तुझ से चाही है अपना मिज़ाज आज
बस्ती तुझ बिन उजाड़ सी है
मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा
जो हाथ अपने सब्ज़े का घोड़ा लगा