मैं ने जो कचकचा कर कल उन की रान काटी
तो उन ने किस मज़े से मेरी ज़बान काटी
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(919) Peoples Rate This
ये अजीब माजरा है कि ब-रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने
जिस ने यारो मुझ से दावा शेर के फ़न का किया
शैख़-जी ये बयान करो हम भी तो बारी कुछ सुनें
गाली सही अदा सही चीन-ए-जबीं सही
लो फ़क़ीरों की दुआ हर तरह आबाद रहो
वो देखा ख़्वाब क़ासिर जिस से है अपनी ज़बाँ और हम
उस संग-दिल के हिज्र में चश्मों को अपने आह
क्या भला शैख़-जी थे दैर में थोड़े पत्थर
लब पे आई हुई ये जान फिरे
जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा-अल्लाह
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं