न लगी मुझ को जब उस शोख़-ए-तरहदार की गेंद
उस ने महरम को सँभाल और ही तय्यार की गेंद
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(815) Peoples Rate This
जावे वो सनम ब्रिज को तो आप कन्हैया
जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों
जी चाहता है शैख़ की पगड़ी उतारिए
जो बात तुझ से चाही है अपना मिज़ाज आज
जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ
दस अक़्ल दस मक़ूले दस मुद्रिकात तीसों
शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने
जो हाथ अपने सब्ज़े का घोड़ा लगा
साहब के हर्ज़ा-पन से हर एक को गिला है
तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम
गाहे गाहे जो इधर आप करम करते हैं
काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी