Love Poetry of Insha Allah Khan 'Insha' (page 2)
नाम | इंशा अल्लाह ख़ान |
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अंग्रेज़ी नाम | Insha Allah Khan 'Insha' |
जन्म की तारीख | 1753 |
मौत की तिथि | 1817 |
जन्म स्थान | Lucknow |
मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा
मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा
मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड
मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम
मिल गए पर हिजाब बाक़ी है
मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे
लो फ़क़ीरों की दुआ हर तरह आबाद रहो
लग जा तू मिरे सीना से दरवाज़ा को कर बंद
क्या मिला हम को तेरी यारी में
काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
जो बात तुझ से चाही है अपना मिज़ाज आज
जिस को कुछ धन हो करे हम से हक़ीक़त की बहस
जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों
जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ
हज़रत-ए-इश्क़ इधर कीजे करम या माबूद
है तिरा गाल माल बोसे का
है मुझ को रब्त बस-कि ग़ज़ालान-ए-रम के साथ
है जिस में क़ुफ़्ल-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार तोड़िए
गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले
गाली सही अदा सही चीन-ए-जबीं सही
गाहे गाहे जो इधर आप करम करते हैं
फ़क़ीराना है दिल मुक़ीम उस की रह का
एक दिन रात की सोहबत में नहीं होते शरीक
दिल-ए-सितम-ज़दा बेताबियों ने लूट लिया
देखना जब मुझे कर शान ये गाली देना
छेड़ने का तो मज़ा जब है कहो और सुनो
चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम
भले आदमी कहीं बाज़ आ अरे उस परी के सुहाग से
बस्ती तुझ बिन उजाड़ सी है