दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया