एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा