अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है