ये दौर है यूँ अपनी बसीरत का क़तील
जाहिल भी हैं सुक़रात-ए-सनद-ज़ाद भी हैं
पुश्त-ओ-शिकम-ओ-चश्म-ओ-लब-ओ-गोश-ओ-दहान
इंसान है ख़ुद इतना कसीर-उल-अतराफ़