कहने में नहीं हैं वो हमारे कई दिन से

कहने में नहीं हैं वो हमारे कई दिन से

फिरते हैं उन्हें ग़ैर उभारे कई दिन से

जल्वे नहीं देखे जो तुम्हारे कई दिन से

अँधेरे हैं नज़दीक हमारे कई दिन से

बे-सुब्ह निकलता नहीं वो रात को घर से

ख़ुर्शीद के अंदाज़ हैं सारे कई दिन से

हम जान गए आँख मिलाओ न मिलाओ

बिगड़े हुए तेवर हैं तुम्हारे कई दिन से

किस चाक-ए-गरेबाँ का किया आप ने मातम

कपड़े भी नहीं तुम ने उतारे कई दिन से

दीवाना है सौदाई है फ़रमाते हैं अक्सर

इन नामों से जाते हैं पुकारे कई दिन से

दिल फँस गया है आप की ज़ुल्फ़ों में हमारा

हैं बंदा-ए-बे-दाम तुम्हारे कई दिन से

मुँह गाल पे रख देते हैं सोते में चिमट कर

कुछ कुछ तो हया कम हुई बारे कई दिन से

मेहंदी भी है मिस्सी भी है लाखा भी है लब पर

कुछ रंग हैं बे-रंग तुम्हारे कई दिन से

डर से तिरे काकुल के नहीं चलते हैं रस्ते

दम बंद हैं इस साँप के मारे कई दिन से

आख़िर मिरी आहों ने असर अपना दिखाया

घबराए हुए फिरते हो प्यारे कई दिन से

किस कुश्ता-ए-काकुल का रखा सोग मिरी जाँ

गेसू नहीं क्यूँ तुम ने सँवारे कई दिन से

पामाल करोगे किसी वारफ़्ता को अपने

अटखेलियाँ हैं चाल में प्यारे कई दिन से

इक शब मिरे घर आन के मेहमान रहे थे

आए नहीं इस शर्म के मारे कई दिन से

फिर 'शौक़' से क्या उस बुत-ए-अय्यार से बिगड़ी

होते नहीं बाहम जो इशारे कई दिन से

(742) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kahne Mein Nahin Hain Wo Hamare Kai Din Se In Hindi By Famous Poet Mirza Shauq Lakhnavi. Kahne Mein Nahin Hain Wo Hamare Kai Din Se is written by Mirza Shauq Lakhnavi. Complete Poem Kahne Mein Nahin Hain Wo Hamare Kai Din Se in Hindi by Mirza Shauq Lakhnavi. Download free Kahne Mein Nahin Hain Wo Hamare Kai Din Se Poem for Youth in PDF. Kahne Mein Nahin Hain Wo Hamare Kai Din Se is a Poem on Inspiration for young students. Share Kahne Mein Nahin Hain Wo Hamare Kai Din Se with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.