देख लो हम को आज जी भर के
कोई आता नहीं है फिर मर के
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आप की गर मेहरबानी हो चुकी
गेसू रुख़ पर हवा से हिलते हैं
मौत से किस को रुस्तगारी है
साबित ये कर रहा हूँ कि रहमत-शनास हूँ
गए जो ऐश के दिन मैं शबाब क्या करता
कहने में नहीं हैं वो हमारे कई दिन से
ज़हर-ए-इश्क़
चमन में शब को घिरा अब्र-ए-नौ-बहार रहा