सारे इम्कानात में रौशन सिर्फ़ यही दो पहलू
एक तिरा आईना-ख़ाना इक मेरी हैरानी
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(676) Peoples Rate This
हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
दिए मुंडेरों के रौशन क़तार होने लगे
और कोई दुनिया है तेरी जिस की खोज करूँ
थी मिरी हम-सफ़री एक दुआ उस के लिए
तैरता मौज-ए-हवा सा आसमानों में कहीं
उस पार बनती मिटती धनक उस के नाम की
मेरे लहू की सरशारी क्या उस की फ़ज़ा भी कितनी देर
ये ज़ाद-ए-राह किसी मरहले में रख देना
'रम्ज़' अधूरे ख़्वाबों की ये घटती बढ़ती छाँव
भटक जाएगा दिल अय्यारी-ए-इदराक से निकलें
अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया