हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
कोई तस्वीर मुकम्मल न बना उस के लिए
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क्या अब मिरी कहानी में
शोरिश-ए-ख़ाकिस्तर-ए-ख़ूँ को हवा देने से क्या
मुहीत-ए-पाक पे मौज-ए-हुनर में रौशन हूँ
मेरे लहू की सरशारी क्या उस की फ़ज़ा भी कितनी देर
इक गहरी चुप अंदर अंदर रूह में उतरी जाए
दिए मुंडेरों के रौशन क़तार होने लगे
नवाह-ए-दिल में ये मेरी मिसाल जलते रहें
घुट के मर जाने से पहले अपनी दीवार-ए-नफ़स में दर निकालो
और कोई दुनिया है तेरी जिस की खोज करूँ
अल्फ़ाज़ की गिरफ़्त से है मावरा हनूज़
ख़ूब है इश्वा ये उस का ये इशारत उस की
लफ़्ज़ों का नैरंग है मेरे फ़न के जादू से