न नमाज़ आती है मुझ को न वज़ू आता है
सज्दा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है
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हर सीना आह है तिरे पैकाँ का मुंतज़िर
ख़ाक जीना है अगर मौत से डरना है यही
दिल को हलाक-ए-जल्वा-ए-जानाँ बनाइए
किस से आज़ुर्दा मिरे क़ातिल का ख़ंजर हो गया
सारी दुनिया ये समझती है कि सौदाई है
शिकवा सय्याद का बेजा है क़फ़स में बुलबुल
क़ैद और क़ैद भी तन्हाई की
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
तिश्ना-लब हूँ मुद्दतों से देखिए
ख़ूगर-ए-जौर पे थोड़ी सी जफ़ा और सही
तौहीद तो ये है कि ख़ुदा हश्र में कह दे