हर सीना आह है तिरे पैकाँ का मुंतज़िर
हो इंतिख़ाब ऐ निगह-ए-यार देख कर
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ख़ाक जीना है अगर मौत से डरना है यही
ख़ूगर-ए-जौर पे थोड़ी सी जफ़ा और सही
तन्हाई के सब दिन हैं तन्हाई की सब रातें
सारी दुनिया ये समझती है कि सौदाई है
तुम यूँ ही समझना कि फ़ना मेरे लिए है
डर नहीं मुझ को गुनाहों की गिराँ-बारी का
बे-ख़ौफ़-ए-ग़ैर दिल की अगर तर्जुमाँ न हो
किस से आज़ुर्दा मिरे क़ातिल का ख़ंजर हो गया
अर्श तक जो बे-ख़ता जाता है ये वो तीर है
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
वही दिन है हमारी ईद का दिन
तुझ से क्या सुब्ह तलक साथ निभेगा ऐ उम्र