मेरी नींदें हराम क्या होंगी
घर में रिज़्क़-ए-हलाल आता है
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जतन करता तो हूँ लेकिन ये बीमारी नहीं जाती
होश खो कर जोश में कुछ इस तरह मैं बह गया
ऐसा नहीं सलाम किया और गुज़र गए
अब हक़ीक़त लग रहा है मेरा अफ़्साना मुझे
तू अगर बा-उसूल हो जाए
कोई करता है जब हिन्दोस्तान की बात ए 'साहिल'
हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार
बुज़-दिली तो वो कर नहीं सकता
मज़ाक़-ए-ग़म उड़ाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
राह-ए-हक़ में तुझे हस्ती को मिटाना होगा
मेरी आँखों में हुए रौशन जो अश्कों के चराग़