तिरा पाँव शाम पे आ गया था कि चाँद था
तिरा हिज्र सुब्ह को जल उठा था कि फूल था
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नज़्म
वजूद पर इंहिसार मैं ने नहीं किया था
क़र्तबा में
नमक इन आँसुओं में कम न था पर नम बहुत अच्छा
पड़े हुए हैं मिरे जिस्म ओ जाँ मिरे पीछे
बरून-ए-दर निकलते ही बहुत घबरा गया हूँ
अँधेरी शाम थी बादल बरस न पाए थे
रब नवाज़ माइल
बहुत से रास्तों में तू ने जो रस्ता चुना था
बस एक रात मिरे घर में चाँद उतरा था
शब-ए-हिज्राँ