कोई ज़ारी सुनी नहीं जाती कोई जुर्म मुआफ़ नहीं होता
इस धरती पर इस छत के तले कोई तेरे ख़िलाफ़ नहीं होता
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(787) Peoples Rate This
बहुत से रास्तों में तू ने जो रस्ता चुना था
इसी दुनिया में दुनियाएँ हमारी भी बसी हैं
जिहाद-ए-इश्क़ में हम आशिक़ों को वार देना
इक खुला मैदाँ तमाशा-गाह के उस पार है
वजूद पर इंहिसार मैं ने नहीं किया था
एक चराग़ यहाँ मेरा है एक दिया वहाँ तेरा
किसी तारीक गोशे में बसर होगी हमारी
मता-ए-बे-बहा आँसू ज़मीं में बो दिया था
अँधेरी शाम थी बादल बरस न पाए थे
लहू में क्या बताएँ रौशनी कैसी मिली थी