घिरा हुआ हूँ जनम-दिन से इस तआक़ुब में
ज़मीन आगे है और आसमाँ मिरे पीछे
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तिरे सामने तो समझ रहा था कि फूल था
लहू में क्या बताएँ रौशनी कैसी मिली थी
इसी दुनिया में दुनियाएँ हमारी भी बसी हैं
वजूद पर इंहिसार मैं ने नहीं किया था
तिरा पाँव शाम पे आ गया था कि चाँद था
बहुत से रास्तों में तू ने जो रस्ता चुना था
सुनहरी नींद से किस ने मुझे बेदार कर डाला
एक चराग़ यहाँ मेरा है एक दिया वहाँ तेरा
किसी तारीक गोशे में बसर होगी हमारी
अँधेरी शाम थी बादल बरस न पाए थे
इक खुला मैदाँ तमाशा-गाह के उस पार है
ना-तवाँ दोश पर शाल