जब तुझ को तमन्ना मेरी थी तब मुझ को तमन्ना तेरी थी
अब तुझ को तमन्ना ग़ैर की है तो तेरी तमन्ना कौन करे
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दाग़-ए-ग़म दिल से किसी तरह मिटाया न गया
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
वही कसीफ़ घटाएँ वही भयानक रात
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रुस्वा करेंगे हम
इक प्यास भरे दिल पर न हुई तासीर तुम्हारी नज़रों की
दाना-ए-ग़म न महरम-ए-राज़-ए-हयात हम
ग़मों की दुनिया को रौंद डालें नशात-ए-दिल पाएमाल कर लें
तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें
जब कभी किसी गुल पर इक ज़रा निखार आया
हमीं हैं सोज़ हमीं साज़ हैं हमीं नग़्मा
अभी सुमूम ने मानी कहाँ नसीम से हार