मैं अपने आप लड़ूँगा समुंदरों से जंग
अब ए'तिमाद मुझे अपने नाख़ुदा पे नहीं
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जला दिया है कि इस ने बुझा दिया है मुझे
प्यास
मोहब्बत रम्ज़-ए-हस्ती है
यही तो दुख है ज़मीं आसमाँ बना कर भी
जानता हूँ अब यूँही बरबाद रक्खेगा मुझे
ये मोहब्बत है इसे गर्मी-ए-बाज़ार न कर
राग ज्ञान
इक ख़्वाब को आँखें रेहन रखें इक शौक़ में दिल वीरान किया
इक नक़्श बिगड़ने से इक हद के गुज़रने से
ज़मीं बिछा के अलग आसमाँ बनाऊँ कोई
क़रीने ज़ीस्त में थे सोख़्ता-जानी से पहले
तिरा ग़म दिल पे इफ़्शा कर रहे हैं