आगही भूलने देती नहीं हस्ती का मआल
टूट के ख़्वाब बिखरता है तो हँस देते हैं
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लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए
बहुत दावे किए हैं आगही ने
तिरे क़रीब भी दिल कुछ बुझा सा रहता है
हमारा राज़-दाँ कोई नहीं है
ग़मों में डूबी हुई है हर इक ख़ुशी मेरी
रात काटे नहीं कटती है किसी सूरत से
पलकों पे कुछ चराग़ फ़रोज़ाँ हुए तो हैं
न जाने कब निगह-ए-बाग़बाँ बदल जाए
मस्लक-ए-इश्क़ बयाँ क्या कीजे
ज़माना गुज़रा है तूफ़ान-ए-ग़म उठाए हुए
रंग कुछ शोख़ से तस्वीर में भर कर देखो
बे-तरह आप की यादों ने सताया है मुझे