रात काटे नहीं कटती है किसी सूरत से
दिन तो दुनिया के बखेड़ों में गुज़र जाता है
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आगही भूलने देती नहीं हस्ती का मआल
ग़मों में डूबी हुई है हर इक ख़ुशी मेरी
ज़माना गुज़रा है तूफ़ान-ए-ग़म उठाए हुए
ये वफ़ा माँगे है तुम से न जफ़ा माँगे है
फूल जब कोई बिखरता है तो हँस देते हैं
पलकों पे कुछ चराग़ फ़रोज़ाँ हुए तो हैं
हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं
बहुत दावे किए हैं आगही ने
लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए
हमारा राज़-दाँ कोई नहीं है
रंग कुछ शोख़ से तस्वीर में भर कर देखो