किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
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ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
भले लगते हैं स्कूलों की यूनिफार्म में बच्चे
ख़ुद-कलामी
काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए
ख़ुद अपने ही हाथों का लिखा काट रहा हूँ
पत्थर के होंट
बच्चों की फ़ीस उन की किताबें क़लम दवात
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने
किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए
फिर से बदल के मिट्टी की सूरत करो मुझे