किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
कहीं चलने की ज़िद करना मिरा तय्यार हो जाना
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काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना
तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता
बच्चों की फ़ीस उन की किताबें क़लम दवात
दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
अना हवस की दुकानों में आ के बैठ गई
जुदा रहता हूँ मैं तुझ से तो दिल बे-ताब रहता है
अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं राह-ए-इश्क़ के हर पेच-ओ-ख़म से वाक़िफ़ हूँ
उकताए हुए बदन
मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ