चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
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मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
सफ़ेद सच
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
अना हवस की दुकानों में आ के बैठ गई
फिर से बदल के मिट्टी की सूरत करो मुझे
उकताए हुए बदन
किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए
अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें
पचपन बरस की उम्र तो होने को आ गई
दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन