तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं
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एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं
मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
हम सब की जो दुआ थी उसे सुन लिया गया
वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
उकताए हुए बदन
हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ