पचपन बरस की उम्र तो होने को आ गई
लेकिन वो चेहरा आँखों से ओझल न हो सका
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(433) Peoples Rate This
अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी
ये बुत जो हम ने दोबारा बना के रक्खा है
सारी दौलत तिरे क़दमों में पड़ी लगती है
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अड़े कबूतर उड़े ख़याल
खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुज़रे
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
बच्चों की फ़ीस उन की किताबें क़लम दवात
दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ