खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुज़रे
ये बच्चे की तमन्ना है ये समझौता नहीं करती
Wasi Shah
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Gulzar
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दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी
किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
मेरे स्कूल
आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब
अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें
ये बुत जो हम ने दोबारा बना के रक्खा है
वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए
ख़ुद-कलामी