दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया है
Allama Iqbal
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एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
हम कुछ ऐसे तिरे दीदार में खो जाते हैं
वुसअत-ए-सहरा भी मुँह अपना छुपा कर निकली
वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
ख़ुद अपने ही हाथों का लिखा काट रहा हूँ
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
सफ़ेद सच
काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
भिकारी