मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई
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अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
छाँव मिल जाए तो कम दाम में बिक जाती है
सारी दौलत तिरे क़दमों में पड़ी लगती है
दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
पचपन बरस की उम्र तो होने को आ गई
ये बुत जो हम ने दोबारा बना के रक्खा है
तुम ने जब शहर को जंगल में बदल डाला है
आख़िरी सच
जितने बिखरे हुए काग़ज़ हैं वो यकजा कर ले
काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले