अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
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पैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है
भिकारी
माँ ख़्वाब में आ कर ये बता जाती है हर रोज़
सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा है
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
आख़िरी सच
दोहरा रहा हूँ बात पुरानी कही हुई
काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
मैं राह-ए-इश्क़ के हर पेच-ओ-ख़म से वाक़िफ़ हूँ
हम नहीं थे तो क्या कमी थी यहाँ
देखना है तुझे सहरा तो परेशाँ क्यूँ है
किसी ग़रीब की बरसों की आरज़ू हो जाऊँ