देखना है तुझे सहरा तो परेशाँ क्यूँ है
कुछ दिनों के लिए मुझ से मिरी आँखें ले जा
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मेरे स्कूल
आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले
ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
मैं इसी मिट्टी से उट्ठा था बगूले की तरह
दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई