किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
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किसी ग़रीब की बरसों की आरज़ू हो जाऊँ
मेरे स्कूल
ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानी
किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
छाँव मिल जाए तो कम दाम में बिक जाती है
भिकारी
दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
मैं राह-ए-इश्क़ के हर पेच-ओ-ख़म से वाक़िफ़ हूँ