वुसअत-ए-सहरा भी मुँह अपना छुपा कर निकली
सारी दुनिया मिरे कमरे के बराबर निकली
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मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले
खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुज़रे
भले लगते हैं स्कूलों की यूनिफार्म में बच्चे
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ
किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा है
तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता
ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
सफ़ेद सच
मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है