अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं
सब क़बीले एक हैं अब सारी ज़ातें एक सी
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Javed Akhtar
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दश्त-ए-बाराँ की हवा से फिर हरा सा हो गया
मैं ख़ुश नहीं हूँ बहुत दूर उस से होने पर
नाम बेहद थे मगर उन का निशाँ कोई न था
ख़ुदा को अपने हम-ज़ाद का इंतिज़ार
एक वारिस हमेशा होता है
वो खड़ा है एक बाब-ए-इल्म की दहलीज़ पर
दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ
सफ़र में है जो अज़ल से ये वो बला ही न हो
तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई
ख़्वाब-ओ-ख़याल-ए-गुल से किधर जाए आदमी
हर्फ़ सादा-ओ-रंगीं
अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो